shahar ke beech
har mod pe
har rah pe
roshni jagmagaa rahi thi
jaise sitare siyah raat mein
lag rahaa thaa jaise mela thaa
logo ka aisa rela thaa
muskurahtein bhi thi
pareshaniya bhi .
sikko ki khankhanahat bhi
aur bachcho ki zid bhi
maine sir jhukaya
bachcho ki zid ke aage
aur woh muskuraya
bachcho ki zid ke aage.
tum toh muskuaraoge hi
saudagar jo thahre
tumhe kya
hamein hi lagane honge pahre.
dekha usne kuchh is tarah se mujhko
jaise kah rahaa ho
kyo ho aise
kyo itne tuchh ho??
apne nanhe ki muskurahat
kya tumhe pasand nahi aayee??
batata hoon ek baat
sun lo mere bhai
sach hai kahaa tumne
ki main ek saudagar hoon
haan mai ek saudagar hoon
sapne bechta hoon
khushiya bechta hoon
ik pal ki khushi jab tum pate ho
mun mera jhoom ke gata hai
sapno ki sunahri duniya mein
ik indradhanush ug ata hai
kyoki
hain tumko khushiya bechi maine
evaz chandi ke sikko ke
haq mera unpe thaa hi nahi
jo ab teri godi mein padey
main toh bas ek jariya thaa
tum tak unko pahuchaane ka
aur shayad tum ek jariya ho
merey bachcho ki roti ka
jo aaj un tak pahuchayee hai
terey chandi ke sikko ne
mai ik saidagar hoon
khushiya bechta hoon
aansoo ponchhta hoon
terey bhi aur apne bhi
main ik saudagar hoon
haan ik saudagar hoon
शहर के बीच
हर मोड़
हर राह पे
रौशनी जगमगा रही थी
जैसे सितारे सियाह रात में
लग रहा था जैसे मेला था
लोगो का ऐसा रेला था
मुस्कुराहटें भी थी
परेशानिया भी
सिक्को की खनखनाहट भी
बच्चों की जिद भी
मैंने सर झुकाया बच्चों की जिद के आगे
और वो मुस्कुराया बच्चों की जिद के आगे
तुम तो मुस्कुराओगे
सौदागर जो ठहरे
तुम्हे क्या ?
हमें ही लगाने होंगे पहरे
देखा उसने कुछ इस तरह से मुझको
जैसे कह रहा हो
क्यों हो ऐसे क्यों इतने तुच्छ हो ?
अपने नन्हे की मुस्कराहट
क्या तुमको पसंद नहीं आयी
बताता हूँ एक बात
आओ सुन लो मेरे भाई
सौदागरहूँ हूँ
मैहूँ सौदागर हूँ
हर मोड़
हर राह पे
रौशनी जगमगा रही थी
जैसे सितारे सियाह रात में
लग रहा था जैसे मेला था
लोगो का ऐसा रेला था
मुस्कुराहटें भी थी
परेशानिया भी
सिक्को की खनखनाहट भी
बच्चों की जिद भी
मैंने सर झुकाया बच्चों की जिद के आगे
और वो मुस्कुराया बच्चों की जिद के आगे
तुम तो मुस्कुराओगे
सौदागर जो ठहरे
तुम्हे क्या ?
हमें ही लगाने होंगे पहरे
देखा उसने कुछ इस तरह से मुझको
जैसे कह रहा हो
क्यों हो ऐसे क्यों इतने तुच्छ हो ?
अपने नन्हे की मुस्कराहट
क्या तुमको पसंद नहीं आयी
बताता हूँ एक बात
आओ सुन लो मेरे भाई
सौदागरहूँ हूँ
मैहूँ सौदागर हूँ
मैं इक सौदागर हूँ
सपने बेचता हूँ
खुशिया बेचता हूँ
इक पल की ख़ुशी जब तुम पाते हो
मन मेरा झूम के गाता है
सपनो की सुनहरी दुनिया में
फिर इन्द्रधनुष उग आता है ii
क्योकि
हैं तुमको खुशिया बेचीं मैंने
एवज़ चाँदी के सिक्को के
हक मेरा उनपे था ही नहीं
जो अब तेरी गोदी में पड़े
मैं तो बस इक जरिया था
तुझ तक उनको पहुचाने का
और शायद तुम इक जरिया हो
मेरे बच्चो की रोटी का
जो आज उनतक पहुचाई है
तेरे चाँदी के सिक्को ने .
मैं इक सौदागर हूँ
खुशिया बेचता हूँ
आँसू पोंछता हूँ
तेरे भी और अपने भी
हाँ मैं सौदागर हूँ
इक सौदागर हूँ
Very thoughtful poem Rajni..
ReplyDeleteA good one..
Keep it up..
Regards,
Deepak
Deepak
DeleteThank alot for appreciating ---thanks for the visit
regards
rajni
A beautiful and profound poem. Thank you for writing it in hindi as well. :)
ReplyDeleteThanks Saru
Deleteso glad you liked it
regards
rajni
Very well said Rajni--both sides help the other,but we only think that we are being benevolent.
ReplyDeleteIndu ji
DeleteThankyou so much --was waiting EAGERLY for your feedback .so glad you liked it
warm regards
and good wishes
rajni