all pictures from the net
रेगिस्तान में घर था
पत्थरों की थी ज़मीन
काटों का जिस्म था
पर नाज़ुक था दिल
मुसाफिर एक गुज़रा
बन के हवा का झोंका
मुहब्बत की दस्तक पर
काटों का जिस्म सिहरा
इश्क और मुश्क
छुपाये नहीं हैं छुपते
काटों में फूल बन कर
खिल उठते हैं रिश्ते
आशिक की दस्तक ने
जज्बातों को झकझोरा
काटों में खिला फूल
आशिक को ढूँढने निकला
जब बीत गए दिन कुछ
नज़रों ने सुकून पाया
खुदा को अपने देख
फूल झूम के लहराया
पावों में बांध घुंघरू
थिरकने लगी वो हरदम
ऐसा लगा की जैसे
साँसों ने जान पाई
दिन बीतने लगे
हीरे के बन के जैसे
रातें भी बन के चांदी
लेने लगी अंगड़ाई
साथ लगा बढने
वक़्त थम गया था
खुशियों से भरा जीवन
इक संग गुज़र गया था
अब वो खड़ी अकेले
याद कर रही है
गुज़रे हुए दिनों को
और मुस्कुरा रही है
खुशिया है अभी बाकी
है साथ दोनों अब भी
प्यार तब बहुत था
है उतना ही प्यार अब भी
There is emotion that tug your heart, Rajni. I think I have read this one before, not sure though :)
ReplyDeleteLoved your DP. love these flowers ~
Thanks ghazala
Deleteand am glad you liked the flowers---white flowers are my favourite.:))
Very nice, Rajni!
ReplyDeleteThankyou so much Amit ji for appreciaiting
Deleteregards
rajni