Thursday, 18 October 2012

war and peace----in hindi


एक था राजा "" अशोक ""
उसकी चक्रवर्ती बन ने की चाह थी ऐसी अजीब
इंसान के जीवन को नहीं समझता था वो कोई नायाब चीज

उसकी जिद ने  मचाई थी तबाही ऐसी
कलिंग देश के हर गाव हर शहर
पर छाई थी उदासी शमशानों  के जैसी
 बन क़र शामत बरस पडा था उसका कहर
दौड़ गयी थी  हर ओर  शोक की लहर 
 ऐसा था वो" राजा अशोक "

पर एक दिन शाम को जब वो निकला देखने युद्ध के नतीजे
चारो ओर थे दृश्य करुना के फैले और आसुओ से थे आँचल माओ बहनों के भीजे 
उसने सुना और देखा विवशता की कराहों को
और झेला अपनी ओर फेके गए श्राप और नफरत के    बाणो को

तब पश्चाताप की आग में
उसका अहंकार जल गया
और दयावान वो राजा बड़ा बन गया
किये उसने प्रजा के  सहूलियत के कई इंतजाम  
तब जाके कहलाया वो "अशोक महान "
उसका साम्राज्य तब  वहा तक पहुच गया  
जहा वो अब तक बन क़र योधा न जा सका
.
ऐसी ही कहानी है
साबरमती के संत की
जिसने बिना खडग बिना ढ़ाल
क़र दिया अपने देश को दुश्मन के चंगुल से आजाद
अकेले खाई  उसने अपने सीने पर गोलियो  को
पर बचा लिए उसने बुझने से लाखो घरो के रोशन दिओ को
अहिंसा से युद्ध जीता और महात्मा बन गया
दुनिया को शांति की राह और अमन सिखा गया
.
इतिहास
के पन्ने
हमेशा लिखते है एक ही कहानी
खून खराबे  से न जीत सका दिलो को
कोई  राजा कोई रानी
फिर क्यों करता है युद्ध
भाई अपने ही भाई से  
पौधा क्यों है वो बोता
नफरत और तबाही के ?
गाँधी ने अहिंसा से जीता युद्ध परायो से -
-बहने दिया न एक बूँद   लहू  का
किसी भी  देश वासियों के.
.
पांडव और कौरव तो थे
भाई भाई
पर खून और तबाही की नदिया उन्होंने भरपूर बहाई
अपने ही देश में मिल जाते है हमे
उदहारण इतने सारे
हिटलर और नपोलियन के किस्सों के ले हम क्यों सहारे ?

देखा नतीजो को है हमने यूद्ध के हमेशा
निर्दोशो का है खून बहा
और दुःख ने किसी को नही  है बख्शा .
करले हम आज से
 ऐसा एक प्रण
दुनिया से युद्ध के नामोनिशा
को मिटा क़र ही लेंगे दम

तब  शायद
हम वो पदवी खुद को सकेंगे  दे
दाता ने हमें दी थी
जो ऐसा  कह क़र के
""मनुष्य की मनुष्यता
इंसान की इंसानियत
है मेरी पूजा
मेरी इबादत
मेरी बंदगी
मेरा धेय "

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