Saturday, 15 December 2018

दर्द

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे ?
तेरे दिए हुए जख्मो पे मरहम लगायें कैसे ?
दर्द जब हद से गुज़र रहा है तो ,
छलकती आँखों से अश्क़ न बहाएँ कैसे ?

दर्द देना लगा आसान तुम्हे 
आँसू हमारे  से क्यों घबरा रहे हो 
चुभन जो उठ रही है तुम्हारे दिल में बार बार 
क्यों ऐसे उसे नकार रहे हो ?
ये घबराहट ये उलझन तुम्हारी कह रही है सरेआम, 

के बाकी है तेरे सीने में इश्क़ के कुछ निशान 
सीने में तेरे दिल धड़क रहा है अभी भी 
मुड के पीछे देख करले कबूल मेरा सलाम। 

रजनी सिन्हा सर्वाधिकार सुरक्षित