आ ज बहुत दिनों बाद
मैंने कलम को उठाया
सोचा कुछ लिख लू
, कुछ ऊकेर लू
इससे पहले की वो यादें धूमिल हो जाये
पर ये क्या
कलम की स्याही सूख चुकी है
कागज़ के पन्नें पीले पड़ गए है
और रूखे भी
कलम नहीं चलेगी उन पर
टूट जायेंगे वो
लगा जैसे वक़्त उलाहने दे रहा है
कह रहा है
तुमने खो दिया है कुछ ,
गवां दिया है सब कुछ
पर मैंने देखा खिड़की से
रौशनी कुछ कुछ बाकि थी
शाम गुज़री नहीं थी
अँधेरा आया नहीं था अभी तक
और मैंने जकड लिया जाते हुए वक़्त को
नयी कलम उठायी
लिया कागज़ भी नया
यादें धुंधली नहीं हुयी थी
हो भी नहीं सकती
वो यादें है हमारी
मेरी और तुम्हारी
वो यादें है ही नहीं
वो तो पल है
जो हम जी रहे थे
जो हम जी रहे है
कितना सच्चा है वो एहसास, वो अचानक अनुभव, कलम की स्याही के सूखने का, पन्नों के पीले पड़ने का. और वो एहसास भी कि कुछ पल जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं.
ReplyDeleteउमाशंकर जी
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद इस प्रशंसा और प्रोत्साहन के लिए
Bahut, bahut hi sundar likha hai, Rajni!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अमित जी इस सराहना के लिए और हौसला अफ़ज़ाई के लिए
DeleteVery well written Rajni.Sometimes we are overcome by despair but a little effort and we are back on road again.I loved your lines.
ReplyDeleteLove n hugs.
Thank you so much Induji
DeleteSo nice to see you back
do read my last post Impact of Media on Society looking forward for your feedback
thanks once again
love
rajni