Thursday 13 September 2012

dilli ki kahani


This poem is a dialogue between the souls of Akbar and his nine jewels

birbal
raja todarmal
raja mansingh
abul fazal
abudurrahim khan-e-khanaa
tansen
mullah do pyaza
faizee
faqir azioddin




दिल्ली की कहानी नौ रत्नों की ज़ुबानी


जन्नत में खुदा से
लेकर इक दिन इज़ाज़त्
अकबर ने बुलाया
अपने नौरत्नो को फ़ौरन्
कहा ----"जाये
जमी पे आप सब्
देखे वहां का हाल
और फिर वहां से लौट कर
करे हमको सब् बयान "

जब् लौट के आये
सारे महारथी
पावो से धरती खिसक चुकी थी
और आँखों में थी नमी

अन्दाज़े बयान उनका कुछः इस तरहा से था

बीरबल ने सबसे पहले
किया दर्द यूं बयान
"खुश्नसीब् है हम और आप
जो रहते नही वहां
दिल्ली नही रही दिल वालों की जहापना
कुछः शौक् बदल गये है बाशिंदों के अब
बस लूट् मची हुयी है
और लुट् रहे है सब् ।
क्या हिन्दु क्या मुस्लिम क्या सिखख क्या ईसायी
मजहब् है सब् का एक
बस रुप्यो की कमायी
औरत की असमत और
इन्सानियत की पाकीज्गी
दोनो बने हुये है
जैसे मजाक की हो कोई चीज"

ये सुन के बादशाह हैरान हो गए
टोडरमल की ओर  घुमायी अपनी नजरे
हिंदुस्तान की हालत देख वो थे सोच में बड़े
घबरा के उन्होंने मांगी मोहलत
थोड़ी सी
कहने लगे " हिंदुस्तान की चिंताजनक
है आर्थिक स्तिथि बड़ी
मह्न्गायी इतनी है की जनता है रो रही
सोना तो फिर भी मिलता है
पर रोटी के है लाले पडे बडे
है मयस्सर नहीं कईयो को तन के लिए कपडे"

फकीर अज़्हिओद्दिन से तब अकबर ने मांगी
कोई सलाह
कह दिया उन्होंने दो टूक
"हुज़ूर शायद सख्ती ही रंग ला सके
वरना बाकी है सब फना"

बादशाह ने मानसिंह से कहा
"कुछ सुझाइए सिपहसलार"
मानसिंह भी रो पड़े
शर्मिंदगी के साथ
कहने लगे "लालच ने कर दिया है फौज को भी दागदार
लेकीन अभी भी है लोग थोडे से बचे हुये
जो जजबा इमान धरम का दिल मे है रखते
करते है कोशिश शायद हाल सुधरे जहापना"

इन ल्फ्जो ने मानसिंग के
किया मरहम कि तऱ्ह काम
अकबर ने सोचा शायद बन जाये बिगडी बात

फिर चैन से उसने तानसेन
कि ओर रुख किया
' क्यो गुमसुम से लग रहे है
क्या बात है मिया ?
उदासी कि ऐसी कोई क्या बात हो गयी
मौसिकी तो महफूज है न ?
या वो भी गरक हुई ? '
तानसेन कि आंखो से बहने लागे आंसू
"मत पूछिये हुजूर
कह न सकेंगे हम
कैसे हलाल कर दिया है संगीत को बेरहम"
कहने लगे "हर ओर है तबाही बड़ी
संगीत में भी नहीं मिलेगी सुकून की कोई झलक
गीतों में सुर न ताल है न है कोई तड़प
लगता है जैसे दिलों में अब बाकी नहीं कसक ".

अब्दुल रहीम खानेखाना
और अबुल फज़ल
दोनों ने कहा
"माफ़ कर दीजिये हुज़ूर
हम से न ले कोई टहल
सारे होश उड गये है
हमारे दिल गये है दहल "

अब बच गए
मुल्लाह दो पियाज़ा
वो थे शायर भी और फकीर
कह दिया उन्होंने
आँखों में भर के बहुत सा नीर
नाम हमारा बन के रह गया है
"खाना कोई लजीज
मिलते है सरायो(होटल) में मुर्ग दो प्याज़ा
नवरतन कोरमा.,  और खीर "

फिर याद आयी अकबर को
फैझी साहब की
जो बुत बने खडे थे
और सोच रहे थे
उस कौम को क्या हुआ
किसकी नजर लगी
क्या भूल हुई हमसे
क्यो भूल गये हमको
हमने तो दिया था
इन्हे दिन -ए- इलाही
कैसे आ गयी इस मुल्क पर ऐसी तबाही
फिर हाथ उठा कर
कहा या अल्लाह हे ईश्वर
रोक ले इस कौम को
अब बंद तबाही को कर
ये देख के बाकियोन ने भी
उनकी आवाज मे आवाज मिला दी
इस मुल्क को
जमी को
दुनिया को
ले बचा या इलाही
हे ईश्वर
मेरे अल्लाह
करते है हम दुआ
यही है
हमारी विनती
यही है
हमारी इल्तजा

4 comments:

  1. Adbhut sunder hai yeh rachna, Rajni. Chalo ab dilli ko uparwale bacha sakey--toh hum sab sukun paye aur chain ki nindh soye...:D:D
    Very entertaining...

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    1. thanks alot Panchali ---yes dilli ki rakhwali important hai ---for us to sleep peacefully---thanks alot for the visit
      love
      rajni

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  2. You are so good with this, I have always found you to be a very intelligent writer :D

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    1. Hausla afzayee ka bahut bahut shukriya Ghazala---love you
      rajni

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