Saturday, 20 April 2013

dharti ka punarjanm


 dharti---ka punarjanm-

  
धरती का पुनर्जन्म



























  मानव ने त्यागी मानवता
सिंहासन विराजी अराजकता
धरती पर हुआ असहिष्णुता का प्रचार
चहुँ ओर जिधर भी दृष्टि गयी
गोचर एक नीरस सृष्टि हुई
धरती ने किया मृत्यु आलिंगन का प्रण 
ले जल समाधी त्यागने चली वह अपने प्राण  II























इक पुष्प पंकज   ध्यानलीन था
जल में तरंगें उठती देख
नयनो के पट उसने खोले
विस्मित हुआ
धरती को जब देखा करते अपने प्राणों का त्याग I
लोक लिया धरती को अपनी कोपलों के बीच
खुद बन बैठा कठोर शिला
और धरती को दी जीवन की सीख I
कठोर बनो
सक्षम बनो
युद्ध  का रखो सामर्थ्य
इश्वर की रचना हो तुम
तुमको देना है सृष्टि को पुनः जीवन दान
 तुम न करना कभी भी जीवन का महा प्रयाण
धरती तब कठोर बनी
 कोमल पुष्प के गर्भ से विकसित हुआ कर्मठ विश्व अपार
































 रंग हीन थी
किन्तु उसमे ज्वाला अग्नि की उपजी
शक्ति का रूप धरा
और दृढ प्रण किया युद्ध  का बारम्बार
नष्ट होगी अराजकता
विध्वंस के बादलों का होगा संहार
नीर रूप धर मनोरम  धरती का पुनः करेंगे हम   उद्धार
 कोमल पुष्प के गर्भ से देखो विकसित हो  रहा विश्व अपारII



5 comments:

  1. Bahut hi sundar kalpna aur uska expression(hey what is the Hindi word for expression?)

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    1. Thanks Indu ji

      tried writing using only HIndi words --no urdu or hindustani words and I am so glad to receive appreciation from you

      thanks once again
      regards
      rajni

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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    1. Nihar ji

      bahut bahut dhanywaad

      mera prayatna thaa ki mai kewal hindi ke shabd prayog karoon
      aapki sarahna ne bahut protsahit kiya hai
      aneko dhanyawad sahit
      rajni

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  3. Hi, I am Anjan Roy. A scarcely known blogger of ‘Anjan Roy’s Vision-Imagination’ & I hereby nominate your blog for THE LIEBSTER BLOG AWARD. For more details refer to Liebster blog award post at http://anjan5.blogspot.com/2013/05/a-moment-to-cherish-3-liebster-award.html
    I am awaiting for your comments, Thanks…!!!

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