अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे ?
तेरे दिए हुए जख्मो पे मरहम लगायें कैसे ?
दर्द जब हद से गुज़र रहा है तो ,
छलकती आँखों से अश्क़ न बहाएँ कैसे ?
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खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
जैसे ज़िन्दगी के वाकिये बदलते रहते है
किताबो को तो बंद कर दे हम
पर जिंदगी को तो खुदा के मिजाज़ छलते हैं
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हर्ष और उल्लास , आमोद और प्रमोद
है साथ साथ चलते , डाले हाथो में हाथ
लेकिन सुख के साथ क्यों चलता है दुःख
क्या सुख का कोई हमजोली नहीं ?
शायद सुख दुःख हमजोली नहीं भाई भाई है
शायद दोनों एक ही माँ के जाये है
शायद दोनों ने मिलकर विश्व के नियम बनाये है
है साथ साथ चलते , डाले हाथो में हाथ
लेकिन सुख के साथ क्यों चलता है दुःख
क्या सुख का कोई हमजोली नहीं ?
शायद सुख दुःख हमजोली नहीं भाई भाई है
शायद दोनों एक ही माँ के जाये है
शायद दोनों ने मिलकर विश्व के नियम बनाये है
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bahut khoob!
ReplyDeletebahut bahut shukriya Amit ji
DeleteBeautifully penned... :-)
ReplyDeletethanks so glad to see you here :)
DeleteVery pensive post.
ReplyDeleteCheer up my dear.
wow Indu ji ---what a pleasant surprise seeing you after such a long time ---I don't get to see your posts on my blogger page either ---hope you have been keeping well --though I too have become very irregular these days ----thanks once again ----tale care warm regards ( its jittery cold here :) )
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