Two poems with positive thoughts to welcome the New Year
चलने को मन आतुर
उड़ने को बेचैन
कट गए पर उसके
आँखे रो रो करती बैन
चारो दिशा घनघोर अँधेरा
उजियारा कही न क्षीण
एक झलक सूरज की
पाने मन हो रहा अधीर
कैसे कैसे क्षण जीवन में
कब और कहाँ से आते
मान इसे किस्मत का लेखा
सब मन को बहलाते
कहते है इसको ही जीवन
यही भाग्य का लेखा
लेकिन जो झकझोर ले इसको
बन जाये विश्व विजेता
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बन जाये विश्व विजेता
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कुहरे ने सोचा एक सुबह
चलूँ धरती की ओर
राहो पर छा जाऊं ऐसे
न ओर दिखे न छोर।
पर उसको मालूम नहीं था
धरती पर , मनुष्य है करता वास
चीर बादलो को वो लेता
कुहरे की क्या बिसात।
घने कोहरे को बेध सकती
एक दिए की लौ
सेतु गंतव्य तक पहुचा देता
गर राह पकड़ लो तो।
रजनी सिन्हा (c) जनवरी २०१७
आपकी हिंदी कवितायेँ मनमोहक हैं. लिखते रहिएगा!
ReplyDelete(There is a typo in बादलों in the second poem.)
बहुत बहुत धन्यवाद् उमाशंकर जी ---वो typo मैंने भी देखा था पर जल्दबाज़ी में सुधार नहीं पायी अभी ठीक किये देती हूँ --- याद दिलानेका शुक्रिया वरना ऐसे ही रह जाता गलतियों के साथ ---thanks once again
DeleteDono kavitaayen bahut sundar!
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Deleteबहुत बहुत धन्यवाद् अमित जी रचना आपको पसन् आयी इस के लिए बहुत शुक्रिया
आशा और विश्वास की लो जगाती रचनाएँ हैं ...
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